sau gulab khile
कोई हमींसे आँख चुराये तो क्या करें !
पर्वत को तिल की ओट छिपाये तो क्या करें !
हम लेके इसे छाना किये हर जगह की ख़ाक
यह दिल कहीं भी चैन न पाये तो क्या करें !
पीना है ज़िंदगी में घड़ी-दो-घड़ी का शौक़
पीकर न कोई होश में आये तो क्या करें !
महफ़िल में उनकी होश था उठने का भी किसे !
दुनिया हमीं को आँख दिखाये तो क्या करें !
भाती नहीं हो जिसको पँखुरियाँ गुलाब की
उसको ग़ज़ल भी रास न आये तो क्या करें !