sau gulab khile

ज़िंदगी दर्द का दाह है
प्यार छाँहों भरी राह है

जलते हैं आँसुओं के दिये
उम्र अब आह ही आह है

मिल ही जायेंगे फिर हम कहीं
राह भी है जहाँ चाह है

किसने अपने लटें खोल दीं
चाँदनी पड़ गयी स्याह है !

छेद यों बाँसुरी में कई
फिर भी सुर का तो निर्वाह है

जब वही बीच से उठ गये
अब न गाने का उत्साह है

हमने होंठों के चूमे गुलाब
किसको काँटों की परवाह है !