sau gulab khile

बहुत हमने खोया, बहुत हमने पाया
जो सच पूछिए, फिर भी जीना न आया

बिखरती गयी रंग की फुलझड़ी-सी
ये किसने बहारों का घूँघट उठाया !

जहाँ से हुई थीं अलग अपनी राहें
वहीं से हुई एक दोनों की छाया

किसीकी तड़प, बेबसी, कुछ न पूछो
भुला भी चुका है, भुला भी न पाया

गुलाब ! एक दुनिया में घायल नहीं तुम
नहीं किसको काँटों ने जीना सिखाया !