sau gulab khile
बड़ी हसीन है सपनों की रात, चुप भी रहो
ऐसे में भला जाने की बात ! चुप भी रहो
हरेक बात में कहते हो, ‘कोई बात नहीं’
घड़ी-घड़ी में वही एक बात, चुप भी रहो
ये हमने माना कि दुनिया न रही वह दुनिया
बचे हैं दोस्त अभी पाँच-सात, चुप भी रहो
ग़ज़ल न पूरी हुई थी अभी कि उसने कहा–
‘बहुत है, ख़ूब है, ग़ालिब भी मात, चुप भी रहो’
छूके होंठों को ये आँसू भी बन रहे हैं गुलाब
वसंत बन गयी सावन की रात, चुप भी रहो