sau gulab khile
भले ही बाग़ में कोयल भी है, बहार भी है
नज़र की ओट में, हर फूल बेक़रार भी है
खिले हैं फूल उमंगों के चारों ओर जहाँ
कहीं पे बीच में यादों का एक मज़ार भी है
दिये तो रूप की पलकों में सज रहे हैं, मगर
किसीके पाँव की आहट का इंतज़ार भी है
हमें मिटा तो रहे हो, मगर रहे यह याद
इन्हीं लकीरों की हद में तुम्हारा प्यार भी है
गुलाब खिलते हैं डालों पे, यह तो देख लिया
गले में देखा जो काँटों का एक हार भी है !