sau gulab khile

मिलके आँखें हैं छलछलायी क्यों !
तीर पर नाव डगमगाई क्यों !

अब उन्हें किस तरह मनाया जाय
रंज हैं जो, हँसी भी आयी क्यों !

लाख बातें बनायी हैं हमने
बात पर एक बन न पायी क्यों !

मोल कुछ भी न मोतियों का जहाँ
आँसुओं ने हँसी करायी क्यों !

कुछ तो प्याले में था ज़हर के सिवा
ज़िंदगी पीके मुस्कुरायी क्यों !

बच के निकले गुलाब से तो आप
फिर भी आँखों में यह ललाई क्यों ?