sau gulab khile
यह ज़िंदगी तो कट गयी काँटों की डाल में
रखते हो अब गुलाब को सोने के थाल में
कुछ तो है बेबसी कि न आती है मौत भी
मछली तड़प रही है मछेरे के जाल में
साज़ों को ज़िंदगी के बिखरना नहीं था यों
कुछ तो हुई थी भूल किसीकी सँभाल में
आहट तो उनकी आयी पर आँखें हुईं न चार
रातें हमारी कट गयीं ऐसे ही हाल में
बँधकर रही न डाल से ख़ुशबू गुलाब की
कोयल न कूकती कभी सुर और ताल में