sau gulab khile

रहे न चाँद, यही चाँदनी रहे न रहे
उभर रही है जो रंगत नयी, रहे न रहे

दिल की फिर कल यही आवारगी रहे न रहे
हसीन शाम की ऐसी घड़ी रहे न रहे

हमारे प्यार की यह ताज़गी न कम होगी
किसीके रूप की जादूगरी रहे न रहे

जो आ सको तो अभी आके एक नज़र देखो
नहीं तो कल कहीं बीमार ही रहे न रहे

किसीकी याद कसकती रहेगी दिल में सदा
ये चार दिन की भले ज़िंदगी रहे न रहे

अभी तो कहते हैं– ‘दे देंगे जान’, पर देखें
पहुँच गये तो वहाँ जान ही रहे न रहे

गुलाब ! आपकी ख़ुशबू तो उनके साथ रही
अब इसका सोच नहीं, पंखड़ी रहे, न रहे