seepi rachit ret

मैं कब यहाँ अकेला था

मुझे नहीं इसका दुख, मुझको जीवन में यश मिल न सका,
गणना हुई न मेरी धरती के महान कवियों के बीच
मेरे तप की स्वीकृति में सुधियों का मस्तक हिल न सका,
दिया न ऊँचा स्थान किसीने मुझे दर्शकों में से खींच।

मुझे नहीं इसका दुख, मुझको जीवन में धन मिल न सका,
स्वर्ण-रजत की चकाचौंध से हँसा न मेरा क्षुद्र कुटीर।
सुरा, सुंदरी-भू-कटाक्ष से हृदय सुमन-सा खिल न सका,
सजे नहीं स्वागत को मेरे, उन्नत भवन, नगर-प्राचीर।

मुझे नहीं इसका दुख, मुझको जीवन में सुख मिल न सका,
जब जो निश्चय किया सदा उससे विपरीत हुआ परिणाम,
मित्र कृतघ्न, बंधु विद्वेषी, भार प्रणय का झिल न सका
दुर्बल अनबूझे अंतर से, कोई जुगत न आयी काम।

सदा पास तुम तो थे, स्वामी! मैं कब यहाँ अकेला था!
यश, वैभव, सुख का कोलाहल, सब पल भर का मेला था।

1943