tujhe paya apne ko kho kar

प्राण की यह लय कभी न टूटे
शेष पहर तक इस तंत्री से तेरा ही सुर फूटे

शक्ति उँगलियों में है जब तक
रहूँ छेड़ता इसको तब तक
छूटें ठाठ रचे जो अब तक

तेरी तान न छूटे

क्षीण-कंठ, शंकित भी प्रतिपल
है, प्रभु! मुझे भक्ति का संबल
पाये मैंने तो चारों फल

रच-रच गीत अनूठे

कैसी भी तंत्री कल पाऊँ
वर दे, इसी वेश में आऊँ
गीत सदा ऐसे ही गाऊँ

काल न जिनको लूटे

प्राण की यह लय कभी न टूटे
शेष पहर तक इस तंत्री से तेरा ही सुर फूटे