vyakti ban kar aa
कभी हम भी आकाश में उड़कर
सूरज को छूने चले थे, ओ जटायु!
अब हमारे पंख झुलस चुके हैं,
चुक गयी है समस्त प्राणवायु;
लगता है, अब धरती पर सिसकते हुए
बितानी होगी शेष आयु।
कभी हम भी आकाश में उड़कर
सूरज को छूने चले थे, ओ जटायु!
अब हमारे पंख झुलस चुके हैं,
चुक गयी है समस्त प्राणवायु;
लगता है, अब धरती पर सिसकते हुए
बितानी होगी शेष आयु।