vyakti ban kar aa

तूने रस्सी का एक सिरा मेरी गरदन में जकड़ दिया है
और दूसरा सिरा अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया है;
मैं भला या बुरा जैसा भी हूँ,
तेरी ही मरजी से बना हूँ,
फिर भी, बता, इस पाप के पंक में कैसे सना हूँ,
तूने मुझे रोका क्‍यों नहीं जब मैं अँधेरे की ओर बढ़ा था!
वासना के कूप में गिरा था, अहंकार के शिखर पर चढ़ा था!
यह भी बता कि तूने बुराई का निर्माण ही क्यों किया
अंधकार क्यों बनाया, मुझे बहकने का सामान ही क्‍यों दिया!
और यदि अँधेरे की रचना आवश्यक थी प्रकाश को जानने के लिए
तो तूने इस उफनती नदी के कगार पर मेरे बंधन ही क्यों खोल दिए
कि मैं उसके थपेड़ों में बह जाऊँ।!
तेरे पास पहुँचने से रह जाऊँ।
सच्ची बात तो यह है
जब सब कुछ तेरी ही इच्छा का परिणाम है
तो मैं बुरा बन रहा हूँ या भला,
यह देखना भी तो तेरा ही काम है।
फिर उसमें मेरा दोष कैसे हो सकता है!
तुझको मुझ पर रोष कैसे हो सकता है!