vyakti ban kar aa
मैं तुमसे क्षमा तो माँगता हूँ
पर क्या तू मुझे क्षमा कर सकेगा!
अपने ही बनाये नियमों को भुलाकर
मुझे अपनी बाँहों में भर सकेगा!
मुझे तो लगता है, सर्वशक्तिमान भी तू
चिर-निरुपायः है, चिर-शक्तिहीन है,
स्वयं निज जाल में फँसी मकड़ी-सा ही
मुझसे भी अधिक पराधीन है।
यदि तुझमें भी वे भावनायें होतीं
जो रह-रहकर मुझे रुला जाती हैं
तो ये सामूहिक दुर्घटनायें क्यों घटतीं
जिनसे अन्याय-अत्याचार की बू आती है!
तू यों निर्लिप्त कैसे देखता रहता
पुत्र की चिता पर रुदन वृद्ध बाप का!
पति के शव से लिपटी नववधू का तड़पना!
दृश्य मातृ-पितृ-हीन शिशु के विलाप का!
पर तू मुझे क्षमा कर सके अथवा नहीं,
मेरे पास इसके सिवा और क्या चारा है!
जब भी हृदय में पश्चात्ताप की आँधी उठी है,
मैंने रो-रोकर तुझे ही पुकारा है।