vyakti ban kar aa
आँसुओं को रोक मत, बहने दे,
आँखों को मन की बात कहने दे।
यह निश्छल भाषा मैं अधिक समझता हूँ,
शब्दों में तो कभी-कभी ही उलझता हूँ।
यह सच है कि मैंने अपने मुँह से
कभी एक शब्द भी नहीं कहा है,
पर ऐसा कभी नहीं हुआ है
जब तू मेरे ध्यान में नहीं रहा है।
जरा उन कोटि-कोटि प्राणियों की ओर भी देख
जिनके पास भाव तो हैं, भाषा नहीं है,
अनुभूतियों के मोती तो हैं,
पिरोने को शब्दों की परिभाषा नहीं है;
यह जो तुझे अभिव्यक्ति का वरदान मिला है,
यह मेरे प्रेम का ही तो प्रमाण मिला है;
तू यह क्यों नहीं समझता
कि मैं सदा तुझसे इसी रूप में मिलता रहा हूँ,
यद्यपि यह बात सही है
कि मैं चिर-अनदेखा, चिर-अनसुना, चिर-अनकहा हूँ!