vyakti ban kar aa
इसके पहले कि सूरज अस्त हो जाय,
मुझे बहुत कुछ कहना है।
माना कि आज सागर में उत्ताल तरंगों का नर्त्तन है,
माना कि आकाश में प्रतिक्षण भीम मेघों का गर्जन है,
मेरी छोटी-सी तरी डगमगा रही है,
हाथ से पतवार छूटी जा रही है,
परंतु इसके पहले कि कोई यह नाव डुबो जाय,
मुझे बहुत कुछ कहना है।
इस रंगमहल में तू कहाँ छिपा है, ओ छलिया!
तुझे ढूँढ़ने में ही मैंने सारा जीवन बिता दिया।
पास रहकर भी तू दूर-दूर है,
अब मेरा अंग-अंग थककर चूर है;
पर इसके पहले कि मेरा कवि थककर सो जाय,
मुझे बहुत कुछ कहना है।’
वे जो बचपन में मुझे छोड़ गये थे, फिर सामने आ जाते हैं,
काँपते हुए मेरी ओर वे अपनी बाँहें फैलाते हैं;
उनके नेत्रों से झर-झर आँसू बहते हैं,
मेरे प्राण मोहाविष्ट-से देखते रहते हैं;
किंतु इसके पहले कि यह चेतना की लहर खो जाय,
मुझे बहुत कुछ कहना है।
इसके पहले कि सूरज अस्त हो जाय,
मुझे बहुत कुछ कहना है।