vyakti ban kar aa

हम सब असत्य हैं, हम सब अयथार्थ हैं।
सच पूछो तो हम वही पदार्थ हैं,
जिनसे सपने बनते हैं,
पल भर को यहाँ कुछ पराये अपने बनते हैं;
थोड़ी देर को स्मृतियों में एक क्षीण स्वर व्याप्त हो जाता है
जल की मिटती हुई रेखा-सा,
और फिर सब कुछ समाप्त हो जाता है—
अनसुना-सा, अनकहा-सा, अनदेखा-सा।