vyakti ban kar aa

ओ मेरे मन!
तुझसे मौन क्‍यों नहीं रहा जाता है?
बिना कहे भी तो
बहुत कुछ कहा जाता है।
सत्य किसी भी तर्क से बड़ा है,
अनस्तित्व की नींव पर ही
अस्तित्व का महल खड़ा है।
आत्मानुभूति को शब्दों का सहारा नहीं चाहिए,
अनहद नाद सुनने के लिये
कोई एकतारा नहीं चाहिए;
फूल क्या अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित करने को
कोई वक्तव्य देते हैं
आकाश के तारे क्या चुप रहकर ही
अपनी बात नहीं कह लेते हैं!
सूरज क्‍या अपने प्रकाश की घोषणा
शब्दों के द्वारा करता है!
चाँद क्या ढोल पीट-पीटकर
पहाड़ की चोटियों पर उतरता है!
ओ मेरे मन!
तू भी भाषा का मोह छोड़ दे,
अणु-अणु में प्रवाहित सत्य की झंकार के साथ
अपनी धड़कनों को जोड़ दे।