anbindhe moti
ज्योतित तम-पथ पर मुख-चंद्र-प्रकाश तुम्हारा
मेरे रथ के आगे-आगे हास तुम्हारा
द्रवित मोम-से कंकड् कठिन अनुर्वर
शूल-फूल-से मृदु पगतलियाँ छूकर
क्षण-क्षण कंकण-किंकिणि-नूपुर-स्वर भर
मुखरित हो उठता चंचल उल्लास तुम्हारा
सिंधु अगम, तरु, भूधर, दुर्गम, कितने
पार किये हिम, सिकता, कर्दम जितने
सह पाते ये प्राण कठिन श्रम इतने
जीवित जो रखता न इन्हें विश्वास तुम्हारा !
रूप अमर यह, मेरे गीत अपरिमित
प्रतिपल नूतन सीमा होती निर्मित
मिल पाते कल्पना-क्षितिज पर ही नित
मेरा मानस, नीला नयनाकाश तुम्हारा
मेरे रथ के आगे-आगे हास तुम्हारा
ज्योतित तम-पथ पर मुख-चंद्र-प्रकाश तुम्हारा
1948