anbindhe moti

प्रिय ! तुम न मिली तो जीवन क्या
मेरे जितना सौंदर्य विश्व में कभी किसी को मिला नहीं

मैं ऐसा फूल खिला जैसा अब तक उपवन में खिला नहीं
इस सुषमा का क्या मोल किंतु मुड़कर देखा न कभी तुमने !
क्या मोल शलभ की छवि का यदि दीपक आसन से हिला नहीं !
यदि आ न सकी खिँचकर तुम ही, मुझमें छवि क्या, आकर्षण क्‍या !
प्रिय ! तुम न मिली तो जीवन क्या !

1940