anbindhe moti
आज वासंती निशा में प्यार मैं कर लूँ किसे ?
चिर-तृषित इन बाहु-पाशों में विकल भर लूँ किसे ?
जल रहे तन-मन व्यथा से, कंठ सूखे जा रहे
भागती परछाँइयों में आज मैं धर लूँ किसे ?
सजल नयनों में तुम्हारी याद तिरती छा रही
चूमकर पलकें तुम्हीं-सी नींद फिरती जा रही
दूर उडुपति हँस रहा मुख-सा तुम्हारे व्योम में
श्याम अलकों-सी तुम्हारी रात घिरती आ रही
ज्वलित नस-नस में भरी उफना रही-सी वेदना
आज किसको सौप दूँ मैं मधुर अपनी चेतना
बिखर कर पाटल-चरण पर सुरभि के लघु मेघ-सा
कर रहा किसको मनाने की हृदय मुदु प्रेरणा ?
गौर जूही-नायिका को कस हृदय में, अंध हो
पी रहा वातास तनु की स्वस्थ मांसल गंध को
नील नभ की सेज पर सोई हुई राका-परी
ले रही अँगडाइयाँ ढीला किये भुज-वंध को
प्राप्त सब को प्रेम की अनुभूति अकथ, अगाध है
देख शशि की ओर मिटी चकोर-शिशु की साध है
स्वर्ण सरसिज-अंक में निःशंक मधुरकर सो रहे
बाँधकर रक्खा मुझे जो, कौन-सा अपराध है ?
1943