antah salila
किसके लिये लिखूँ मैं?
किसके लिए लिखूँ. मैं?
सम्मुख तिमिर घना है
फण काल का तना है
नित शून्य में समाती
यह आत्म-सर्जना है
कोई कहीं न ऐसा जिसके लिए लिखूँ मैं
जयनाद उधर होता
इस ओर हृदय रोता
संसार कहीं पाता
है व्यक्ति कहीं खोता
उसके लिए लिखूँ या इसके लिए लिखूँ मैं?
किसके लिए लिखूँ मैं?
किसके लिये लिखूँ मैं?