antah salila संध्या की वेला श्रांत-वदन क्लांत-चरण और मैं अकेला शून्य गगन शून्य धरा लुप्त किरण ज्योति-करा उर में अनुताप भरा स्मृतियों का मेला कहाँ सहृद बंधु सभी संग थे जो अभी अभी ! कर का दर्पण तक भी करता अवहेला संध्या की वेला श्रांत-वदन क्लांत-चरण और मैं अकेला Share on: Twitter Pinterest Facebook Google+