boonde jo moti ban gayee

ओ पिया!
दुःख की घनी अँधेरी रातों में ही तू क्यों आता है ?
क्या तुझे मेरा आँसूभरा मुखड़ा ही भाता है?
मेरे ओठों पर खिले गुलाब
मेरे कंठ की जलतरंग-सी हँसी,
तू इन्हें क्यों नहीं देख पाता है !
जब मैं अपनी सेज पर सोलहों श्रृंगार किये
रात-रात भर तेरी प्रतीक्षा में जगती हूँ
तो तू दूर-दूर रहता है,
परंतु जब सारे अलंकार उतारकर
मछली की तरह धरती पर लोटने लगती हूँ
तो कानों के पास आकर प्रेम का संदेश कहता है
ओ पिया! दुख की घनी अँधेरी रातों में ही तू क्यों आता है!
क्या तुझे मेरा आँसूभरा मुखड़ा ही भाता है?