boonde jo moti ban gayee

मैं वह नहीं हूँ
जो रूप, रंग, रेखाओं में व्यक्त हुआ हूँ,
मैं तो चिर-अनदेखा, चिर-अनकहा, चिर-अनछुआ हूँ।
ओ ममतामयी !
मुझे प्यार करने में तुमसे भूल तो नहीं हो गयी!
मेरे चिर-अजान ‘मैं’ को तुमने कैसे पहचान लिया!
मुझे अपना क्योंकर मान लिया!
मुझमें क्या देखा था तुमने उस दिन,
अब तक मैं जान नहीं पाया हूँ,
जब भी आया हूँ तुम्हारे संमुख,
डरता-डरता ही आया हूँ।