chandan ki kalam shahad mein dubo dubo kar

सैनिक से
तुम रुकते तो रुक जाता है, बढ़ते तो बढ़ता है
तुम्हीं नहीं लड़ते सीमा पर, निखिल देश लड़ता है

लोकतंत्र का, स्वतंत्रता का मंत्र टेसनेवाले
आज खड़े आँखें मूँदे, कानों में उँगली डाले
नैतिकता पर ही समाज की भौंह चढ़ी दिखती है
कूएँ में ही कूटनीति की भाँग पड़ी दिखती है

कितना भी काटें पर विषधर, तुम्हें न विष चढ़ता है

देशप्रेम का कवच, सत्य की ढाल, न्याय का रथ है
साहस, शौर्य, धीरता ही हैं शस्त्र, अभय ही पथ है
विश्व विभाजित रहे, विश्वपति पर है साथ तुम्हारे
बढ़े मुक्ति-गंगा, जिसको ले आया भागीरथ है

आज तुम्हारे चरण-चरण में अंगद की दृढ़ता है

स्वतंत्रता का पुरश्चरण हर बार नहीं होता है
बारबार ज्वालाओं का त्यौहार नहीं होता है
झिझके तो फिर शीश यहाँ स्वीकार नहीं होता है
जो नौका-हित रुका, नदी के पार नहीं होता है

हँसता रहे टूटकर, माँ पर फूल वही चढ़ता है

जहाँ गिरेगा रक्त तुम्हारा, मंदिर वहाँ बनेंगे
गड़ इतिहास-पृष्ठ पर अब ये चरण-चिह्न उभरेंगे
दाग रहे तुम तोप और बारूद जुटाते हैं हम
धरती के माथे पर कोई दाग न रहने देंगे

काँटे को काँटे से ही खींचना कभी पड़ता है

जय हो हिंसा-द्वेष-दंभ पर सत्य, न्याय, ऋजुता की
दानवता पर मानवता की, जड़ पर चेतनता की
धुले विश्व-मन का कल्मष, करुणा के किरण-करों से
जय हो प्रलय पयोधि-पत्र-धृत, स्मित, प्रशांत शिशुता की

महातिमिर को चीर ज्योति का कमल ऊर्ध्व चढ़ता है
तुम्हीं नहीं लड़ते सीमा पर, निखिल देश लड़ता है

1971