chandni

चाँदनी खिली दूध की धोयी

अंग रँगे तारों की झलकें
नत चितवन, निद्रालस पलकें
पगतल-चुंबित श्यामल अलकें

आधी रात, विचरती जूही-वन में बाला कोई

जल-थल छवि-मंत्रित थिर बसते
पल-पल नभ से फूल बरसते
लाजभरे मधुराधर हँसते

अटपट गति से चली आ रही वह कुछ खोयी-खोयी

राह कँटीली ज्योत्स्ना-मधुमय
मुख-लावण्य-श्री-अरुणोदय
हुआ कुंज में अंधकार लय

प्रात समझकर जागी दुनिया रात देख फिर सोयी
चाँदनी खिली दूध की धोयी

1941