chandni

चाँदनी खेल रही होली

किरणों की पिचकारी भर कर
छोड़ रही तम-कृष्ण वदन पर
दिशि-दिशि रंग-अबीर रहा भर

नीली नभ-यमुना-पुलिनों पर राधा-सी भोली

नाच रही घन कुंजों में फिर
सिर ले शशि की कलशी अस्थिर
टूट रजत कुमकुमे रहे गिर

घूम-घूम कर ताल दे रही तारों की टोली

नव कदम्ब-कानन में भटकी
चली धरे व्रज्या पनघट की
बिखर रही रँग -रोली पट की

साधों से भर रही फैल कर नयनों की झोली
चाँदनी खेल रही होली

1944