chandni

विश्व-मोहिनी बनी चाँदनी सुर-मोहिनी अप्सरा

नव चंपा-कलि-सा खिलता वय
अधर बीच स्मिति का अरुणोदय
कुंचित भ्रू, नयनों में विस्मय

उर अनुराग-भरा

मुख पर उड़ीं लटें घुँघराली
झुकी चिबुक, ग्रीवा छविशाली
कंपित वक्षस्थली छिपा ली

अंचल ने लहरा

नत चितवन, छवि मधुर लाज में
उर्मि-चरण ज्यों बँधे साज में
नाच उठी प्रणयी-समाज में

उर्बसि-सी अपरा

विश्व-मोहिनी बनी चाँदनी सुर-मोहिनी अप्सरा

1941