chandni

विरहिन राधा-सी यह कौन बावली!
नभ-पनघट पर भटक रही सज अलकों में मुक्तावली

कभी लोटती घन-कुंजों की दिखते छाया साँवली
*पी-पी ‘ रटती, सरि तट-तट, उठ चलती कभी उतावली

रोता पवन, चित्र-से गिरि-तरु-कुंज-कुसुम-पत्रावली
फूट बह रही दधि की मटकी, मिट्टी के-से भाव ली
विरहिन राधा-सी यह कौन बावली !

1943