gandhi bharati
जिस दिन प्रथम प्रभात हुआ था मानवता के जीवन का
विश्व-जलधि के तट पर, उस दिन शांतिभरा शीतल संदेश
गूँज उठा था पद्म-कोष से मधुकर के नव गुंजन-सा,
आदिछंद-सा, वेद नाम से पूज्य हुआ जिसका आदेश;
फूट पड़ा था उस दिन कवि का कंठ, विहग-सा, निर्झर-सा
बही मधुर कविता मधूक के रस-सी, किसी अनाघ्राता
नयी, असूर्यपश्या कलिका की चितवन-सी, मुग्ध रसा
लदी कुंद कुसुमों से, पुलकित, हिमकणमय, सद्यःस्नाता।
फैली हवन-धूम की माला पावन कुटज-कुटीरों में
प्रथम ज्ञान-सी, नव परिचय-सा विश्वरूप का लीला-जाल
इंद्रजाल बन झलका संमुख; सप्तसिंधु के तीरों में
प्राणों की अनुभूति हँस पड़ी पहन प्रेम की शुचि जयमाल।
आज वही संदेश किसीने वैसी ही मादकता ले
दिये विश्व को, जीर्ण सुरा ज्यों कोई नव घट में ढाले