gandhi bharati
हवन-घूम उड़ रहा, गंध से मंथर मलय, सुगंधित रेणु,
ऋषिबालाएँ खड़ीं द्वार के कदली-स्तंभ-निकट चुपचाप
किसी अनागत के स्वागत में, दूर सुनाई पड़ती वेणु
क्रीड़ारत शिशुओं की, दिक्-दिक्-गुंजित साम-ऋचा-आलाप।
शांतिपूर्ण संदेश छा रहा तरु-पल्लव-दूर्वा-दल में,
गोधूली चिक्वन पुरवधुओं की करती कच-ज्योति मलिन,
सर सो रहे, सरोरुह मुँदते, मधुपों के दल हलचल में,
कोई कहता मेघ घिरे हैं, कोई कहता बीता दिन।
मृग-शिशु भीत न दूर जा रहे, चौकड़ियाँ भर प्रांगण में
थकित बैठ जाते नीले दृग खोले मृग-दृगियों के बीच
नृत्य दिखाकर उन्हें, भर रहा प्रीति-भाव, जन-जन-मन में
जैसे कोई गुरु आकर्षण सबको पास रहा है खींच।
वह संदेश सनातन, मानव-आत्मा का स्वाभाविक स्वर,
सुना दिया फिरसे, बापू! तुमने अतीत में से आकर।