gandhi bharati
धरती पर हँसती उज्वल चाँदनी, पहन, ग्रीवा में गोल
किरण-हार सारस के जोड़े विचर रहे, नव कुंद-प्रसून
गलबाँही दे मुक्त पवन की, डोल रहे जैसे हिंडोल,
एकरूप भू-गगन, सृष्टि में कुछ भी कहीं न लगता न्यून।
नये प्रेम की, नयी शांति की आभा से पुलकित संसार
शिशु-सा सोया स्वप्न देखता, मुकुलित भी आँखें हँसतीं
तितली की पाँखों-सी, मानवता करती नूतन श्रृंगार
नव छवि-सुमनों से, तम की वेणी के तार-तार कसती।
जलनिधि की पलकों में गुंजित एक नवल जीवन का राग
मंत्रमुग्ध कालिय-सा शत-फण उठा नाचता जो अविरल
मधुर प्रेम की वंशी-ध्वनि पर, बरस रहा भू पर अनुराग
दिग्बालाओं की उज्ज्वल चितवन से, शीतल, मधुर, विमल।
कोमल भावभरे मानस, उन्मुक्त कल्पना जन-जन में,
खिली अहिंसा की पावन चंद्रिका विश्व के प्रांगण में।