geet vrindavan
चलो मधुवन में चल कर नाचें
चलते क्षण हरि ने दी थी जो मुरली, उसको जाँचे
बोली ग्वालिन एक बिलख कर
सुन तो वे लेंगे वंशी-स्वर
मिलता न हो भले ही अवसर
पत्र हमारे बाँचे
पूनो खिली दूध की धोयी
यमुना जाग पड़ी है सोयी
लो, आया कुंजों में कोई
भरते हरिण कुलाँचें
चलो मधुवन में चल कर नाचें
चलते क्षण हरि ने दी थी जो मुरली, उसको जाँचे