har moti me sagar lahre
सुरों की धारा में है बहना
मुझे शेष तक इस जग में कवि बनकर ही है रहना
करना था जो, किया न कुछ भी
पा-पाकर भी दिया न कुछ भी
जिया बहुत पर जिया न कुछ भी
क्यों मिथ्या दुख सहना !
शब्द दिये शत रूप सजाये
नित नव भावलोक दिखलाये
गीत यहाँ मैंने जो गाये
उन्हें तुच्छ क्यों कहना !
काल-दशन से कौन बचा है !
किसे न खा वह गया पचा है !
पर मैंने जो महल रचा है
कभी न जाने ढहना
सुरों की धारा में है बहना
मुझे शेष तक इस जग में कवि बनकर ही है रहना