har subah ek taza gulab
दिल हमें देखके कुछ देर को धड़का होता
तुम किसी और के होते भी अगर, क्या होता !
हम भी सीने में धड़कता हुआ कुछ रखते थे
दो घड़ी रुकके कभी हाल तो पूछा होता
हमको भूलोगे नहीं, सच है, मगर कहते वक़्त
अपना चेहरा भी तो आईने में देखा होता !
दिल में कुछ और भी यादों की कशिश बढ़ जाती
तुम जो मिलते भी तो आख़िर यही रोना होता
जानते हम जो चुभायेगा तू काँटे भी, गुलाब !
भूलकर भी न क़दम बाग़ में रखा होता !