har subah ek taza gulab
दिये तो है रोशनी नहीं है, खड़े हैं बुत ज़िंदगी नहीं है
ये कैसी मंज़िल पे आ गये हम, कि दोस्त हैं, दोस्ती नहीं है
चमक रहे हैं हज़ारों तारे, भले ही हैं चाँद और सूरज
तलाश है जिस किरन की हमको, बस एक लेकिन, वही नहीं है
बुझा-बुझा, सर्द -सर्द-सा कुछ, है अब भी सीने में दर्द-सा कुछ
पड़े हैं मुँह ढँकके हम भले ही, मगर तबीयत भरी नहीं है
हम अक्स हैं तेरे आईने के, कभी तो बढ़कर गले लगा ले
रहे हों ख़ामोश, प्यार की पर हमारे दिल में कमी नहीं है
गुलाब! जिसने भी हँसके देखा, उसीके तुम उम्र भर रहे हो
जो सच कहें तो सभी हैं अपने, यहाँ कोई अजनबी नहीं है