har subah ek taza gulab
आप और घर पे हमारे, क्या खूब!
दिन में उग आयें हैं तारे, क्या खूब!
हमने सूरत भी न देखी उनकी
दिल में रहते हैं हमारे, क्या खूब!
हम खड़े हैं लहर पे बुत की तरह
और बहते हैं किनारे, क्या खूब!
आखिर आ ही गए हम आपके पास
एक तिनके के सहारे, क्या खूब!
उनकी आँखों में खिल रहे थे गुलाब!
हमने काग़ज़ पे उतारे, क्या खूब!