hum to gaa kar mukt huye

अंधकार, अंधकार, अंधकार
धरती पर, अंबर में, अंबर के पार

सत्‌ का अविगत स्वरूप
चेतन का अंध कूप
छोड़ रहा काल रूप

फणि-सा फुफकार

अणु-अणु में घर इसका
राज सृष्टि पर इसका
अंदर-बाहर इसका

है अमिट प्रसार

दिखते ही ज्योति क्षीण
पल में करता विलीन
फैलाकर अंतहीन

अपना मुख-द्वार

अंधकार, अंधकार, अंधकार
धरती पर, अंबर में, अंबर के पार

मार्च 87