hum to gaa kar mukt huye

कभी फिर होगा मिलन हमारा?
क्या हमको पहिचान सकोगे, मिल भी गये दुबारा?

माना, गति ही सूष्टि-नियम चिर
विरह-मूल है जीवन अस्थिर
क्या न बिछुड़कर मिल जाते फिर

ये रवि-शशि-ग्रह-तारा!

किसने उर में प्यार दिया है?
पीड़ा का उपहार दिया है?
जग में हमें उतार दिया है

ऐसे बिना सहारा?

है क्‍या कोई और किनारा
मिलता जहाँ विश्व यह सारा?
बँधती जहाँ काल की धारा

भुजबंधन के द्वारा?

कभी फिर होगा मिलन हमारा?
क्या हमको पहिचान सकोगे, मिल भी गये दुबारा?

दिसम्बर 86