hum to gaa kar mukt huye

सब कुछ छोड़ चला बनजारा

सोने, चाँदी की झलमल में
सोया सुख से रंगमहल में
यों न, हाय! लुटना था पल में

क्रूर काल के द्वारा

कितने खेल खेलकर आया
तब यह कोष जमा कर पाया
हर बाजी पर जी ललचाया

दाँव उठा लूँ सारा

अबकी हाथ लगा था गहरा
उजड़ गया पर स्वप्न सुनहरा
कौन यहाँ दम भर भी ठहरा

आया जब हरकारा!

सब कुछ छोड़ चला बनजारा

जुलाई 86