jyon ki tyon dhar deeni chadariya
अहं त्वा सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि, मा शुचः
दिल में पहले सी रही आग नहीं
चेतना में विरति, विराग नहीं
है अँधेरा ही अँधेरा आगे
तप नहीं, तितिक्षा नहीं, त्याग नहीं
जायें ऐसे में तो किधर जायें !
प्राण क्या हो निराश मर जायें!
पर शरण पायें कहाँ मरकर भी
आप वादे से यदि मुकर जायें!
अब तो, प्रभु! आपकी दया का ही सहारा है
जग में फँस, जीवन का दाँव मैंने हारा है
जल की प्रकृति हो डुबाना, किंतु डूबते को
शरणागत जान, क्या न आपने उबारा है!