kasturi kundal base
अनंत की गुफाओं में कुंडली मारकर बैठे
शेषनाग के फण पर
मेरे पाँव का अँगूठा गड़ा है,
सूर्य-चंद्र-तारों से भरा यह नीलाकाश
मेरे सम्मुख सिर झुकाये खड़ा है,
मेरी भुजायें दिशाओं की परिधि लाँघकर
महाशून्य का आलिंगन कर रही हैं,
काल का यह अनादि-अनंत विस्तार
मेरी मुट्ठी में बंद पड़ा है।