kasturi kundal base

अपने अंदर झाँकते जाओ
और जो कुछ दिखाई दे
कागज पर आँकते जाओ’,
कितनी सुंदर उक्ति है!
कवि बनने की, भला
इससे सहज और कौन-सी युक्ति है!
परंतु मुझे तो अपने मन में
एक अंधा कुआँ दिखाई देता है,
चारों ओर धुआँ ही धुआँ दिखाई देता है;
इससे निपटने का जो उपाय है
मैं वही जानना चाहता हूँ,
शब्दों का जाल डालकर
मानस के मोती छानना चाहता हूँ।