kasturi kundal base
अपने अहम् में प्रविष्ट होकर मैंने देखा है
कि चाँद-सूरज के चारों ओर
मेरे ही चरणों की रेखा हैं,
जब भी मेरा मन
किसी वस्तु की कामना करता है,
कोई बात-की-बात में
उसे मेरी हथेली पर ला धरता है।
आह ! उस समय क्यों यह बात
मुझे नहीं सूझी है
कि मैं जिसमें से मनचाही राशि निकाल लेता हूँ
वह मेरे पूर्वार्जित पुण्यों की ही पूँजी है।
क्यों यह विचार मेरे मन में नहीं आया है
कि जीवन भोगभूमि ही नहीं कर्मभूमि भी है!
आज तक क्यों मेरा आचरण उस पूँजी में
कुछ भी और जोड़ नहीं पाया है!