kasturi kundal base
ओ मेरे मन!
तू क्यों भ्रांत हुआ है !
अंजलियों से जल उलीचने से भी
कहीं दावानल शांत हुआ है|
यह आग तो तभी बुझेगी
जब उसकी कृपादृष्टि इसे बुझाने आयेगी।
इन नन्हीं-नन्हीं जल-कणिकाओं से तो
लपटों का वेग और दुर्दात हुआ है।
ओ मेरे मन!
तू क्यों भ्रांत हुआ है !
अंजलियों से जल उलीचने से भी
कहीं दावानल शांत हुआ है|
यह आग तो तभी बुझेगी
जब उसकी कृपादृष्टि इसे बुझाने आयेगी।
इन नन्हीं-नन्हीं जल-कणिकाओं से तो
लपटों का वेग और दुर्दात हुआ है।