kasturi kundal base
मेरी बाँहों में महासागर अठखेलियाँ कर रहा है,
पेड़ के पत्तों पर चमकनेवाले तुहिन-बिंदु
मुझे क्या लुभायेंगे!
मैंने अपने वक्ष पर
अनलपंखी शंपाओं के आघात झेले हैं,
पाँवों में चुभते रेत के कण
मुझे क्या आजमायेंगे!
मैंने सूरज से आँखें मिला रखी हैं,
जुगनुओं से उजाले की भीख,
मैं क्यों माँगूँ!
मैंने आकाश की नील शिला पर
अपने हस्ताक्षर टाँक दिये हैं,
धरती पर छपे हुए कागज के टुकड़े
मेरा मोल क्या बढ़ायेंगे !