kavita
वंदी आज तन-मन-प्राण
कंठ में हैं गान बंदी
अधर में मुस्कान बंदी
बंधनों में हो रहा व्यक्तित्व का निर्माण
देह का बंधन हृदय को
लाज का बंधन प्रणय को
रात-दिन जड़ बंधनों में तड़पती है जान
मुक्ति अब केवल वहीं हैं
मृत्यु में बंधन नहीं है
अमरता के कवि! तुम्हारा यह करुण अवसान!
बंदी आज तन-मन-प्राण
1940