kavita
कैसे तब बँधेगी आस
कलि -कुसुम मुरझा जायेंगे
अलि -दल न गाने पायेंगे
जब अंक में पतझर के खो जायेगा मधुमास
तरु-दीप भी बुझ जायेंगे
तारे न अश्रु बहायेंगे
क्या देख रजनी में करेंगे ज्योति का विश्वास
स्मृति भी न मन में आएगी
रो आँख भी थक जाएगी
कैसे करूँगा व्यक्त तब अपने ह्रदय की प्यास
कैसे तब बँधेगी आस
1940