kitne jivan kitni baar

हमारी टूट गयी है डोर
और हाथ को हाथ न सूझे ऐसा तम घनघोर

सूरज चाँद जहाँ सकुचे हैं
अब तक भी न कहीं पहुँचे हैं
क्यों मन को वे मार्ग रुचे हैं

जिनका ओर न छोर?

जब चलकर गुम ही होना था
क्यों अपना संबल खोना था
हमें प्रेम में थिर होना था

      जैसे मुग्ध चकोर

हमारी टूट गयी है डोर
और हाथ को हाथ न सूझे ऐसा तम घनघोर