kitne jivan kitni baar

हमारे सपने बिखर गये
एक-एक कर वे चिर-संगी जाने किधर गये

बालू ही बालू दिखती है पथ के दायें-बायें
नहीं पेड़ की छाँव कहीं भी जहाँ तनिक सुस्तायें

किस मरुथल में आ पहुँचे हम दिन दो पहर गये

बालू पर पदचिह्न बना देने से ही क्‍या होगा!
कौन जान पायेगा वह जो हमने निज में भोगा!

नहीं दिखेंगे रूप कभी जो मन में सँवर गये

हमारे सपने बिखर गये
एक-एक कर वे चिर-संगी जाने किधर गये?